Page 65 - Chayanika
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ीवन
   ॉ॰ आनंि बललभ धौलयखं ी

                 -1-
               ीवि अष्स्त्थर
           गनतशील बदं ,
   ले ाता हमको कहााँ-कहााँ !
 कभी टहम लश रों के पार चले,
कभी सागर की लहरों पर डोले ।
         कभी ूमता चले,
      गहि वि प्रान्तर मंे ।
       कभी रात भर गे !
        चााँद के सगं -सगं ।
      ािी-अि ािी गहों पर,
           र्गरता रता,
        वर्ाष की बँादू ों सा !
            कभी हँासाता,
           कभी रुलाता !
           कभी अिायास
      बाहों में भर लते ा है ।
                 ीवि !
           एक सपिा है
       सहसा ो ाता है !

                -2-

          काािँ ों की चभि
           या तो सकी है

             मेरा मि !
             ं ा के ोंके
           या तो सका है
             मरे ा ति !
   हर हाल में मसकाता हूँा म,ंै
   हर म सम में गिगिाता हूाँ,
          ीवि है धूप-छावँा !

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